०२ जुलाई २००४ से ‘शिक्षा बचाओ आंदोलन’ प्रारंभ हुआ। इस आंदोलन के केंद्र में तात्कालिक कारण के रूप में उस समय की सरकार द्वारा पाठ्यचर्या में शामिल यौन-शिक्षा का प्रावधान था। हमारी यह आंदोलनात्मक यात्रा निरंतर शिक्षा के पाठ्यक्रमों में व्याप्त विकृतियों, विसंगतियों व विद्रूपताओं के विरुद्ध चलती रही। परिणामतः देश में पहली बार शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यक्रम देशव्यापी विमर्श का केंद्र बिंदु बना। भाषा, साहित्य, इतिहास, राजनीति विज्ञान, दर्शन और अन्य विषयों के पाठ्यक्रमों में जो विसंगतियां थीं, उन्हें लेकर हमारा देशव्यापी आंदोलन चलता रहा और हमने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने देश की भाषा, धर्म, संस्कृति, महापुरुषों, परंपराओं एवं व्यवस्थाओं को अपमानित करने के षड्यंत्रों को बेनकाब करने का सफल एवं सार्थक प्रयास किए। शिक्षा एक सतत संस्कारित करने वाली प्रक्रिया है और इसमें आधारभूत बदलाव करना केवल आंदोलनों से संभव नहीं है। ऐसे में, ‘शिक्षा बचाओ आंदोलन’ को मूर्त संस्थानिक एवं सृजनात्मक स्वरुप प्रदान करते हुए २४ मई २००७ को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का गठन किया गया। शिक्षा का मूल लक्ष्य मनुष्य के चरित्र का निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास है। इसी ध्येय के साथ शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपने आधारभूत विषयों के रूप में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास पर कार्य करना आरंभ किया। तदुपरांत भारत की शिक्षा भारत की संस्कृति, प्रकृति एवं प्रगति के अनुरूप हो - इस उद्देश्य के साथ हमारा कार्य विस्तार क्रमिक रूप से होते गया। सर्वप्रथम हमने ‘चरित्र निर्माण’ के साथ-साथ मूल्य आधारित शिक्षा, मातृभाषा में शिक्षा, वैदिक गणित, पर्यावरण शिक्षा और शिक्षा की स्वायत्तता पर कार्य करना प्रारंभ किया। ये हमारे मूलभूत विषय हैं।
तदंतर भाषा में न्याय मिले, इस हेतु हमने न्यायपालिका और विधि शिक्षा में भी भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास आरंभ किए।आज परिणाम के रूप में हम देख सकते हैं कि देश के उच्च न्यायालयों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक भारतीय भाषाओं में न्याय मिलने आरंभ हो गए हैं इसी प्रकार क्रमिक एवं स्वाभाविक ढंग से प्रबंधन शिक्षा में भारतीय दृष्टि, शिक्षक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षाएं, इतिहास शिक्षा की भारतीय दृष्टि एवं शोध प्रकल्प हमारे कार्य क्षेत्र के विस्तार में जुड़ते गए। अपने गठन के समय से ही शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपना लक्ष्य तय किया- ‘देश की शिक्षा को एक नया विकल्प देना’। इसी उद्देश्य से हम भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन के साथ-साथ देश के भीतर और बाहर भारतीय भाषाओं के समर्थक एवं इस दिशा में कार्यरत सभी व्यक्तियों तथा संगठनों को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से २० दिसंबर २०१५ को भारतीय भाषा मंच का गठन किया गया। जब हमें ऐसा प्रतीत हुआ कि देश के न्यायालयों में जनता को जनता की भाषा में न्याय नहीं मिल रहा है तो हमने भारतीय भाषा अभियान के माध्यम से न्यायालयों में भारतीय भाषाओं के उपयोग हेतु प्रयास प्रारम्भ किए। न्यास ने शिक्षा के आधारभूत विषयों पर कार्य प्रारंभ किए और हमारी कार्य यात्रा अनवरत जारी है। न्यास ने जिन विषयों पर कार्य प्रारंभ किए उन विषयों का वैकल्पिक पाठ्यक्रम भी तैयार किया गया। देशभर में संगोष्ठियों, कार्यशालाओं और परीचर्चाओं में विद्वानों एवं विद्यार्थियों के साथ विमर्श के उपरांत ‘शिक्षा में नए विकल्प’ का प्रारूप नाम से एक पुस्तिका तैयार की गई है। इस प्रारूप पर देशभर में चर्चा सत्र भी आयोजित किए जा रहे हैं।
सारांश : हमारा मानना है की शिक्षा में सुधार हेतु सरकार के द्वारा शिक्षा की नीति, प्रशासन एवं पाठ्यक्रम में परिवर्तन आवश्यक है। इसके साथ सरकार शिक्षा हेतु अधिक से अधिक संसाधन उपलब्ध कराएँ एवं सकारात्मक कार्यों का सहयोग, समर्थन करें, यह भी आवश्यक है, परन्तु शिक्षा में जमीनी बदलाव समाज का प्रमुख दायित्व है। इस हेतु समाज एवं सरकार इन दोनों के संयुक्त प्रयास आवश्यक हैं। इसमें प्रत्यक्षतः शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लागों की प्रमुख भूमिका है, तभी शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन संभव होगा। इन प्रयासों को देशव्यापी अभियान एवं आन्दोलन बनाने हेतु यह कार्य किया जा रहा है। शिक्षा देश की प्राथमिकता का विषय बने यह भी आवश्यक है। इस हेतु सभी से प्रार्थना एवं आह्वान है कि शिक्षा परिवर्तन के इस महायज्ञ में हम भी अपनी आहुति प्रदान करके अपने कर्तव्य का निर्वहन करें।
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